:नज़्म:
जब जीना है यारो, तो ज़िन्दगी शौक से जीओ
वरना रोज़ मर मर के जीने में क्या रखा है
यह ज़िन्दगी तो कुदरत का तोहफा है 'रमेश'
तो फिर इसको गमो का आशियाँ क्यों बनाते हो
ज़िन्दगी यों भी तो कट जाएगी 'रमेश'
मकसद छोड़कर यों जीए तो क्या खाक जीए
हमने ज़िन्दगी को खुदा की हकीकत,इनायत माना
लेकिन तुम खुदही पर खुदा का भरम कर बैठे
में सिर्फ पानी का एक कतरा हूँ 'रमेश'
तो फिर खुद को समंदर का भरम क्यों रखूं
तुम भी जब मेरी तरह खुद को एक पानी का कतरा
समझकर जीओगे 'रमेश'
तो वोह दिन समझना तुम
खुदही खुदा को मिल जाओगे
--अश्विनी रमेश
( यह नज़्म मेरी बिलकुल ताज़ा तरीन रचना है, जो मेने २६/४/२०११ को लिखी है आशा है आपको पसंद आएगी! )
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